Monday, 16 July 2012

कही हंगामा जलज़ला तबाही का मंज़र

ऐसे हालत मे जीना भी हुनर लगता है

हमने अपनों के लिया जान भी लुटा दी मगर
...
चाहे जितना करो उनको तो कसर लगता है

चैन से सोने वाले उनकी बुराई करते

जो सारी रात बात इन्ही के लिए जगता है
यहाँ कुछ शोर है कुछ गंदगी बदबू है यहाँ

ऐसा लगता यहाँ इंसान बसर करता है

वरना तो ऊंची हवेली यहाँ बहुत है मगर

कितना वीरान क्या इंसान यहाँ रहता है

ऊँचे महलो मे है नोटों के बिस्तरे लेकिन

उनको है नींद नहीं किसका डर सा रहता है

देखो सडकों पे खा के रूखी दिन की मेहनत से

कैसे मजदूर वो बेफिक्र पसर रहता है

स्वरचित

जीतेन्द्र मणि

सहायक आयुक्त पुलिस

पी सी आर

पुलिस मुख्यालय

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