इन्सान की जगह बसते यहाँ हिन्दू मुसलमान
हमने नयी बसती हुई बस्ती नही देखी
दिल बाट लिया और लिया जाति धर्म बाट
...
तबसे इनमे खुशिया नहीं मस्ती नहीं देखी
इन् परिन्दों का दिल ही क्यों लगता है पाक साफ़
ये मंदिर ओ मस्जिद पेय जा के बैठते है आप
इन्मे तो कोई फिरका परस्ती नहीं देखी
इंसान है नापाक अपने मजहबी सुर से
इनमे वो ताजगी वही मस्ती नहीं देखी
एक औलिया का दर है वो मस्ती से सरबोर
हेर कोई यहाँ पता है बस औलिया से ठौर
झुक जाय न जो औलिया के दर पेय प्यार से
ऐसा तो कोई सर कोई हस्ती नहीं देखी
--
स्वरचित
जीतेन्द्र मणि
सहायक आयुक्त पुलिस
पी सी आर
पुलिस मुख्या
हमने नयी बसती हुई बस्ती नही देखी
दिल बाट लिया और लिया जाति धर्म बाट
...
तबसे इनमे खुशिया नहीं मस्ती नहीं देखी
इन् परिन्दों का दिल ही क्यों लगता है पाक साफ़
ये मंदिर ओ मस्जिद पेय जा के बैठते है आप
इन्मे तो कोई फिरका परस्ती नहीं देखी
इंसान है नापाक अपने मजहबी सुर से
इनमे वो ताजगी वही मस्ती नहीं देखी
एक औलिया का दर है वो मस्ती से सरबोर
हेर कोई यहाँ पता है बस औलिया से ठौर
झुक जाय न जो औलिया के दर पेय प्यार से
ऐसा तो कोई सर कोई हस्ती नहीं देखी
--
स्वरचित
जीतेन्द्र मणि
सहायक आयुक्त पुलिस
पी सी आर
पुलिस मुख्या
No comments:
Post a Comment