Monday, 23 July 2012


जिन्दगी

हम जिन्दगी को खुशनुमा करने मे रह गये

गम हर किसी का स्वयं ही सहने मे रह गये

समझा किसी ने भी नहीं अपना हमे कभी

हम सबको यू ही अपना सा कहने मे रह गये

खुद को है क्या पसंद कभी गौर न किया

अपनों की आरजू को ही बस अपना कहा गये

ये जिन्दगी तो सीख ही देती रही मुझे

क्या आदमी है वो जो सिर्फ खुद को ही जिए

ये पाठ मैने पढ़ लिया अपना लिया इसे

सबकी करी मदद जरूरत लगी जिसे

अमृत पिलाया सबको जहर छाट के पिया

हर  आरजू को दफ़न करने मे राह गये

गम हर  किसी का स्वयं ही सहने मे रह गये




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