Friday, 27 July 2012


    इश्क की राह

ये राह ए इश्क है चलना

यहाँ दुश्वार कितना है

गुलों की चाह  मे या रब

यहाँ पे खार कितना है

यहाँ पर मज़िलो की जुस्तजू

करता है हर कोई

ये आंखे हुस्न  के दीदार

को अरसा नही सोई   

जिस्म इस राह पर चोटिल

हुआ बेज़ार कितना है  

गुलों --------------या रब

यहाँ ------------कितना है  

है आशिक चलता अंगारों

पे अपना प्यार पाने को

वो हर सुर भूल कर गाता

मुहब्बत के तराने को

हर एक कतरा लहू कर

दे निसार ,प्यार कितना है

गुलो की चाह मे या रब

यहा पर  खार कितना है  
जितेन्द्र मणि   

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