मित्रों ये कवि़ता
मैने सुनामी त्रासदी के दौरान अंडमान मे अपनी पदस्थापना के दौरान तबाही का
मंज़र देख के लिखी थी तथा वहा हट बे द्वीप मे राहत कार्य भी किया जिस हेतु मुझे
अंडमान के माननीय उप राज्यपाल द्वारा प्रशस्तिपत्र भी प्राप्त हुआ
२६
दिसम्बर २००४ सुनामी की विनाश लीला
हो
रहा इस बार फिर से आगमन नव वर्ष का
पर
नहीं दिखता कही मंजर मुझे तो हर्ष का
है
नहीं वो गात पुलकित ,ठहाके न लग रहे
हर
गली कूचा है वीरान गाँव सब सूने पड़े
जल जो
जीवन है बना कातिल भी हत्यारा यहाँ
एक
पला मे लुट गया कितनो का देखो आशियाँ
चंद
मिनटों मे उठी लहरे बड़े उद्वेग से
गर्जना
करती भयावह बढ़ रही थी वेग से
प्रथम
कुछ क्षण को हुआ संकुचित सागर यहाँ
विकट
तांडव था वो करने जा रहा इस दरमयान
फिर
उठी विषधर तरंगे दंश देने को यहाँ
मनुज
पशु पल्लव संग तरु हो गये सब बियावान
आठ मीटर
की तरंगे चली फिर तो कपकपाती
पेड़,घर,पशु
मनुज सबको काल के मुख मे समाती
बह
रहे सब विवश को जाने कहा किस ओर को
वो
विधाता भी नहीं था रोक पाया जोर को
बह
गयी वो प्रगति ,था विज्ञान का ऐसा पराभव
तबाही
की धरा पर थी कर रही ये प्रकृति तांडव
कर
रही है अट्टहास वो दंभ पर विज्ञान के
हँस
रही विद्रूपता पे आज वो इंसान के
थमा
जब तांडव ये दिख रहे शव क्षत विक्षत से
जो
बचे थे कापते थे निरंतर हिलती धरा से
लुट
गया सब कुछ मगर हिम्मत नहीं वो लूट पाई
आपदा
भी हिम्मते मर्दा से तो ना जीत पायी
फिर श्रृजन
के भाव मन मे ले खड़ा वो हो गया
आज हिम्मत
से हिमाला से बड़ा वो हो गया
जितेन्द्र मणि