ये रह ए इश्क है ....
जो चले हो इश्क ऐ डगर तो फिर यू न हादसों से डरा करो
कभी अपनी भी तो सुना करो कभी मेरी भी तो कहा करो
यू ही आंधिया अब आयेंगी तेरे राह मे तेरे कश्ब ओ घर
...
जो जला सको खुद अपना घर तो ही राह ए इश्क चला करो
यू चल के बस दो चार पग तुम लडखडा के फिसल गए
तुम क्या जलोगे मशाल से जो इतनी जल्दी पिघल गए
ये राह ए इश्क सनी हुई बस आशिको के खून से
हँस के लहू बहाओ तुम जरा मुस्कुरा के चला करो
जितेन्द्र मणि
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