Thursday, 27 September 2012


कुछ इसे गुदगुदा गया है कोई

खुशी से यूँ रुला गया है कोई

अब नहीं कुछ सुनाई पड़ता है

प्यार से यूँ बुला गया है कोई

  जितेन्द्र मणि   

 

          नकाब

तेरे नकाब का चर्चा शहर मे जोर पे है

रुख जो हो बेनकाब ,खुदा जाने क्या हो

इन नश्तर-ए-नैनों से क़त्ल कितने ही हुए

आँखों से जो पिए ,तो खुदा जाने क्या हो

जो हुस्न चाँद सा जुल्फों से छिपा रखा है

जो जुल्फ खोल दे खुदा जाने क्या हो

नजाने कितने राज दफ़न है तेरे दिल मे

जो गिरह खोल दे दिल की ,जाने क्या हो

जितेन्द्र मणि   

   


छू गया कोई दिल को कुछ ऐसे

अश्क आँखों से खुशी के छलके

लगा की खुद हि आ गया है खुदा
या खुदा तुझमे जिस्म सा ढल के

jitendra mani
 

Wednesday, 26 September 2012


दिल की आवाज़

अपने दिल मे उतरा तुम्हे  

अब ना दूरी गवारा हमे

रूह मे जा के तुम बस गये

किस खुदा मे सवांरा तुम्हे

अब जलाती है तन्हाइयां

ना बिछड़ना दुबारा हमे

जिस्म ओ जाँ एक हो ही गये

तेरी बाहों मे खो ही गये

कितने तूफ़ान से टकरा गये

फिर बनाया किनारा तुम्हे

दिल किया अब हवाले तेरे

कदमो मे ये मेरा प्यार है

सबसे सुंदर सलोना गज़ब

कितना प्यारा मेरा यार है

गर रही जाँ सलामत सनम

खाता हूँ आज तेरी क़सम

नज़रें हैरत मे पड़ जाएंगी

वो दिखाऊँ नज़ारा तुम्हे

है सिसकता मेरा जिस्म ये

इस जहाँ के दिए घाव से

चोट पे चोट देते सभी

फिर मज़ा लेते है चाव से

अब तेरा ही सहारा मुझे  

बिन तेरे अब ना गुज़ारा मेरा

चाहे कितना भी तुम भाग लो

ढूंढ लूँगा दुबारा तुम्हे

जितेन्द्र मणि    

Tuesday, 18 September 2012


ना सुकून का इसमे आसार है

 

तु जो दरम्यान मेरे यार है

जाने दिल को क्यों ना करार है

वो चला जाएगा मेरे पहलू से

इसी बात से दिल बेजार है

तु जो दूर हो तो भी ना सुकून

बस दिल को तेरा इन्तेजार है

ये अज़ब है प्यार का सिलसिला

ना सुकून का इसमे आसार है

 

जितेन्द्र मणि

इंसान नहीं बनने को तैयार आदमी

 

इंसान बन सका ना लाख करके वो जतन

फिर भी तो खुदा बनने को तैयार आदमी

पैसे की भूख ,प्यार है शोहरत से इस क़दर

जीने के लिए मरने को तैयार आदमी

कोशिश तो बड़ी की कई करतब दिखा लिया

लेकिन खुदा के आगे है लाचार आदमी

चंदा पे कदम रखा वो मंगल पे जा पंहुचा

इंसानियत की धरती पे जाने भला तो क्यों

इंसानो सा ना चलने को तैयार आदमी

वो हिंदू बना सिक्ख,मुलमान भी बना

इंसान नहीं बनने को तैयार आदमी

 

जितेन्द्र मणि    

 

      बटवारा

 

ले ले जेवर सभी दौलत का कारवां ले ले

तु अपने हिस्से मे पूरा ज़मी मकान ले ले

अरे बड़ा हूँ मेरी एक बात मान ले तु

मेरे माँ बाप के हरगिज़ ना करना हिस्सा तू

मुझे तु मेरी ज़मी और आसमान दे दे

रख ले तु सारी ये दौलत ये सारा पैसा तु

मेरे हिस्से मे मेरे भाई बाप और माँ दे दे

 

जितेन्द्र मणि    

Tuesday, 11 September 2012


     बन जा इंसान

वो जो दहशत के सहारे अमन की चाह मे है

वो है काफ़िर वो सभी दोज़खी की राह मे है

कोई राम ओ खुदा नहीं कहता कभी हमसे

करो हलाक यू मासूम को बोलो कसम से

बिला वज़ह ना बना बंदे जहन्नुम ये जहाँ

जन्नते चाह मे तु कर ना इन्हे यू कुर्बान

अरे समझ ले सबसे बड़ी तहजीब है ये

अगर जो हो सके तू भी तो बन जा इंसान

जितेन्द्र मणि

चंदा तेरा दीदार अब तो हम ना करेंगे

 

चेहरे पे लिए दाग चंदा तुझे क्यों गुरूर

तुझपे अदाओं का है छाया कैसा ये सुरूर

लेकर पराया नूर चंदा किस भरम मे है

तुझमे भी है क्या शर्मोहया जो सनम मे है

जो खुद के नूर से सुकून देती है मुझको

नज़रों के इशारे से चुरा लेती है दिल को

मुझको नहीं तेरी ज़रूरत सुन ले ओ चंदा

अब ईद को कहेंगे सनम आज छत पे आ

हम उसको देख कर के अपनी ईद करेंगे

चंदा तेरा दीदार अब तो हम ना करेंगे

जितेन्द्र मणि         

Monday, 10 September 2012


         ज़मीर

जिन्दगी भर वो लड़ा हिम्मत से पर

आज वो देखो खड़ा झुकाए सर

आज अपने दिल के टुकड़े को पड़ा

जिन्दगी से हारता ,कितना लड़ा

बेच डाला उसमे कल अपना ज़मीर

जिन्दगी का आखरी जेवर गया

पर वो बच्चा जो था बिस्तर पे पड़ा

बाप के आने से पहले मर गया

जितेन्द्र मणि   

   

जिंदगी का आखरी जेवर गया

तंग आकार मुफलिसी के दौर से

कर के हर कोशिश बड़े ही गौर से

हार कर बच्चों की ज़लिम भूख से

अपनी अस्मत बेचने को वो चली

मगर  फिर किस्मत के हाथों देख लो

किस तरह से देखो गयी है वो छली

लूट डाला नोच डाला भेडियों ने राह मे

जिंदगी का आखरी जेवर गया

जितेन्द्र मणि

   

       विद्रूपता

देख के इतनी भयानक दुनिया

भरी काँटों से भयावह दुनिया

जहा प्यासे सभी देखो लहू के

ऎसी शोषक है ये अज़ब दुनिया

नोच कर खा रहे एक दूसरे को

बड़ी है क्रूर ये गज़ब दुनिया

देख कर इसको एक मासूम बच्चा

बड़ा होने  से भी घबरा रहा है

जिस तरह कर रहे हम भ्रूण हत्या

अरे मासूम की वो घृणित हत्या  

अरे जो कोख मे है अपनी माँ की

जन्म लेने से भी कतरा रहा है

जितेन्द्र मणि

Sunday, 9 September 2012


        मिलावट

जिन्दगी से तंग आ कल रात उसने

जहर की गोली मंगाया खा गया

सुबह वो जिन्दा उठा था ठीक सा

उसका सर इस बात से चकरा गया

खैर जो भी हुआ वो अच्छा हुआ

रह के जिन्दा बहुत ही वो खुश हुआ

मगाई उसने मिठाई खुशी से

शुक्रिया उसने कहा प्रभु खुशी से 

चढा कर मंदिर मे उसको खा गया

मगर फिर उसका था सर चकरा गया

मिलावट से थी मिठाई जहरीली वो

फिर गया देखो सो अंतिम नींद वो  
 
जितेन्द्र मणि