बसते खुदा यहीं
तुम तोडते दिलों को
,मंदिरों के वास्ते
उजाडते हो बस्तियां
मस्जिद के वास्ते
क्या सोंचा है कभी
सभी मजहब तो एक है
है रास्ते अलग मगर
मंजिल तो एक है
आंसू मे भिगो कर अगर
कुरान लिखोगे
तुम दर्द को निचोड़
के पुराण लिखोगे
कुछ भी नहीं हासिल तुम्हे
मजहब के रार मे
बंदे खुदा बदते है
देख सिर्फ प्यार मे
इश्वर खुदा खुश होगा
क्या बहा के कोई खून
ये मशवरा माँनो मेरा
तुम छोड़ दो जूनून
मंदिर गिराओ
मस्जिदों को तोड़ दो सभी
ना तोडो दिल इंसान
का बसते खुदा यहीं
जितेन्द्र मणि
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