मेरी पत्नी श्रीमती किरण मणि त्रिपाठी को समर्पित मेरी ये कविता
मैने चाहां है तुन्हे तबसे जबसे मैने
...
तुम्हे जाना भी नहीं था, देखा भी नहीं था
हर रोज तुम आती रही ,मेरे खाबो को
सतरंगी खाब सा सजाने वाली
रातरानी की खुशबू सा महकाने वाली
मेरी कौन है तू तेरा कौन हूँ मैं
मेरी साँस मे तू, मेरी बाहों मे तू
मेरी आहोँ मे तू, मेरी राहों मे तू
मेरे दिन मे भी तू, मेरी रात मे तू
धड़कन मे भी तू जज्बात मे तू
तन मन मे भी तू ,तड़पन मे भी तू
है तेरी आरजू , है तेरी जुस्तजू
वाफाओ मे भी तू ,कजाओ मे भी तू
दुआओं मे भी तू ,खुदाओ मे भी तू
दुआओं मे भी तू , सजाओ मे भी तू
नसो मे भी है तू , शिराओ मे भी तू
दिशाओं मे तू है , हवाओं मे भी तू
घटाओ मे मे भी तू , फजाओ मे भी तू
है मंदिर मे भी तू , अजानो मे भी तू
है गीता मे तू ही ,कुरानो मे भी तू
है तड़पन मे तू ही , जुनून मे भी तू
मेरे ख़त मे तू ही , मजनूँन मे भी तू
है दिल मे भी तू , इस जिगर मे भी तू
मेरे धर्म मे तू ,है ईमान मे तू
मेरा नाम भी तू है बदनाम भी तू
मेरी नाव भी तू , है पतवार भी तू
मेरी जीत भी तू , मेरी हार भी तू
मेरे फूल भी तू , मेरे खार भी तू
स्वीकार भी तू , है इनकार भी तू
निर्गुब भी तू ही, है आकार भी तू
मेरी भावना तू , मेरी कामना तू
मेरी वासना तू , मेरी साधना तू
मेरी अर्चना तू , है आराधना तू
मेरे कर्म मे तू , मेरे धर्म मे तू
मेरी लाज़ भी तू , मेरी शर्म भी तू
मेरा कोष भी तू , मेरा जोश भी तू
मेरा होश भी तू , है मदहोश भी तू
मेरा स्पर्श भी तू , है आगोश भी तू
मेरी रुदन भी तू , है आक्रोश भी तू
मेरी है धरा तू , है आकाश भी तू
मेरा आज भी तू , है इतिहास भी तू
हर पल हर सू , है तेरी जुस्तजू
तू ही तू तू ही तू तू ही तू तू ही तू
स्वरचित
जीतेन्द्र मणि
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