चीख के रो पड़ा है
सन्नाटा
दिया खुदा का हर एक
जख्म उसने हंस के लिया
अपने ने गैरो ने
सबने उसे जख्म ही दिया
दर्द का दर्द बड़े जतन से उसने था पिया
दर्द से उसका बड़ा
नाता साथ उसने दिया
चीख़ कर रो पड़ा है
सन्नाटा आज फिर से
दर्द ए सैलाब मे जो
उफ़ तलक न उसने कहा
खुदा भी आजमा के देख
लो अब हार गया
पीर ए पर्वत से कभी
एक भी आंसू न बहा
जितेन्द्र मणि
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