Monday, 30 July 2012


चीख के रो पड़ा है सन्नाटा

दिया खुदा का हर एक जख्म उसने हंस के लिया

अपने ने गैरो ने सबने उसे जख्म ही दिया

दर्द  का दर्द बड़े जतन से उसने था पिया

दर्द से उसका बड़ा नाता साथ उसने दिया

चीख़ कर रो पड़ा है सन्नाटा आज फिर से

दर्द ए सैलाब मे जो उफ़ तलक न उसने कहा

खुदा भी आजमा के देख लो अब हार गया

पीर ए पर्वत से कभी एक भी आंसू न बहा

जितेन्द्र मणि  

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