Monday 30 July 2012


           सस्ता और महंगा

ये महगाई ही है क्या जो, फक़त सिक्को की खातिर अब

कर रहा किस तरह इंसान देखो खून रिश्तों का

जहा मे बिक रहा ईमान लेकिन कितना तो सस्ता

अरे इंसान क्या अब तो भरोसा ना फरिश्तों का

हो कहते आप की देखो बड़ी महगी हुई दुनिया

अरे दो वक्त की रोटी मे माता बेचती “मुनिया “

अरे अब बिक रहे इंसान कितने सस्ते मे देखो

और इंसानियत तो बिक रही न मुफ्त मे देखो

ये सस्ता है या महगा नहीं कहना काम बच्चों का

माँ अस्मत बेंच कर भर पा रही न पेट बच्चों का

जितेन्द्र मणि


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