आ
खुशी आ
आ खुशी आ किसी बहाने
से
तुझको देखा नहीं
जमाने से
दर्द अब आँख नम नहीं
करता
रो दूँ शायद मैं
खुशी पाने से
जिस्म ये जख्म का
समंदर सा
दिल मे चलता है कुछ
बवंडर सा
अब तो अपने भी गैर
लगते है
गैर से बड़ा घाव देते
है
गैरो से ही जख्म मिले
अब तो
अच्छा अपनों से जख्म
खाने से
आ खुशी---------------------से
खार से तन ये जार जार
हुआ
हादसा मुझसे बार बार
हुआ
प्यार के गीत भी कितने
बेगाने लगते है
मिलन के राग भी झूठे
तराने लगते है
अब तो मिलता है सुकून
इस दिल को
दर्द ए दिल दर्द के
तराने से
आ खुशी आ किसी बहाने
से
तुझको देखा नहीं
जमाने से
जितेन्द्र
मणि
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