Friday, 20 July 2012

           वो माँ ही थी

वो माँ ही थी जो आंसू देख
कर तेरी आँखों मे
जमीन ओ आसमा सर
पे उठाया करती थी
तेरे आंसू जो  दो बूँद
भी छलक जाए 
आसुओ  का तो वो
 दरिया  बहाया करती थी
निवाला तेरे हालाक से
उतारने के लिए
हज़ार रूप रंग माँ तेरी
ही धरती थी
अब उसी माँ को तू
सुकून न दे पाता है 
गमो मे डाल के बिन बात
अपनी उस माँ को
किसी के कहने पे
दिन रात क्यों रुलाता है
बिलखती माँ को यु   ही
खाट पे तड़पते छोड़
जा के मंदिर मे तू क्यों
घंटिया  बजाता है
अरे पापी तेरी भगवान
क्यों सुनेगा भला
चाहे जितना तू भोग
फूल ही चढ़ाता है
घर के भगवान रख
भोखा तू अंधेरे मे
जाके मंदिर मे दिए
रोज तू जलाता है

स्वरचित
जितेन्द्र  मणि 

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