तू है काफिर
मेरी तस्वीर के टुकडे
हज़ार कर लेकिन
मेरी दिल के तो यू टुकड़े
ओ मेरे यार न कर
जो मेरे संग भी निभा
ना सका प्यार तो फिर
ये इल्तेज़ा है किसी
और से भी प्यार न कर
तूने मुझसे कराया
कितना इन्तेज़ार अपना
नहीं लौटूंगा अब तू
मेरा इन्तेज़ार न कर
ज़माना बीता है इज़हार
ए प्यार करने मे
न किया अब तलक तो अब
तू ये इज़हार न कर
खुदा मे भी तो
मोहब्बत का नूर दिखता है
तू है काफ़िर खुदा का
अब तो तू दीदार न कर
जितेन्द्र मणि
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