लंगर की तरह
अजाब माहौल है गुमसुम
यहाँ सब बैठे है
लग रहा है ये समां
मौत के मंजर की तरह
आज हर बात सच की दफ़न कर दी जाती है
चुभता है सच उन्हे
दिल मे एक खंज़र की तरह
लाख कोशिश करो पैदा
न यहाँ कुछ होगा
ये जमी हो गये बेकार
सी बंज़र की तरह
बस वही लोब बचा सकते
है इस कश्ती को
डूब सकते हो जो
मजधार मे लंगर की तरह
वो कितने दर्द के
दरिया को भी पी सकता है
उसकी ताक़त है “मणि “
गहरे समंदर की तरह
जितेन्द्र मणि
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