Tuesday, 24 July 2012


जो उसका नूर ही

जो उसका नूर ही हर सू दिखाई दे मुझको

करूँ मैं क्या सदा उसकी सुनाइ दे मुझको

निभा सकूँ बड़ी पाकीजागी से रस्म ए वफ़ा

इतनी ताकात तो ऐ अहले खुदाई दे मुझको

फ़ना कर दू ये जिस्म यार पे मैं हस कर के

लुटा दूँ दिल और प्यार यार पे मैं  हँस कर के

उसी मे आप खुदा ही दिखाई दे मुझको

वफ़ा ईमान की रसम नई बना दू मैं

खुदी को खुद को ,खुदाई को भी लुटा दूँ मैं

उसके सजदा करूँ नज़रें बिछाऊ उसके लिए

वजूद अपना भी हँस कर के बस मिटा दूँ मैं

वो बिछडें ना कभी बस ये दुहाई दे मुझको


जितेन्द्र मणि  

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