इस सच से अब तलक तो बेखबर रहा हूँ मैं
उनकी भी महफ़िलो की भी खबर रहा हूँ मैं
जब भी दुआए मांगी अमन ओ चैन की मांगी
...
पर फिरकापरस्ती मे बेअसर रहा हूँ मैं
सच मिटने न दिया मिटा डाला वजूद को
हर झूठ का तो आखरी सफ़र रहा हूँ मैं
ज़िंदा मिसाल बन ना सका शाज़िशो के बीच
पर सच की जीती जागती कबर रहा हूँ मैं
अल्लाह के दर पर न पहुच पाया भी तो क्या
हज़रत के दर ले जाऊ वो डगर रहा हूँ मैं
उनकी भी महफ़िलो की भी खबर रहा हूँ मैं
जब भी दुआए मांगी अमन ओ चैन की मांगी
...
पर फिरकापरस्ती मे बेअसर रहा हूँ मैं
सच मिटने न दिया मिटा डाला वजूद को
हर झूठ का तो आखरी सफ़र रहा हूँ मैं
ज़िंदा मिसाल बन ना सका शाज़िशो के बीच
पर सच की जीती जागती कबर रहा हूँ मैं
अल्लाह के दर पर न पहुच पाया भी तो क्या
हज़रत के दर ले जाऊ वो डगर रहा हूँ मैं
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