दर्द का समंदर
दर्द का एक समंदर है
वो समेटे हुए
अपनी तन्हाई मे खुद
को है वो लपेटे हुए
ना छेड उसको न तू
उसकी अजमाइश कर
पी गया दर्द का दरिया ही वो हँसते हँसते
न उसके घाव की ऐसे तो
तू नुमाइश कर
न उसके जखम को कुरेद
दर्द दे के नया
न उसके दर्द की
प्यारे यहाँ पैमाइश कर
अगर तू करना ही कुछ
चाहता है तो सुन ले
भला उसका हो खुदा से
यही फरमाइश कर
जितेन्द्र मणि
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