Monday 23 July 2012

माँ की दुआ
जिन्दगी ढूढ ही लेती है बहाने कितने
बन ही जाते है जवानी मे फसाने कितने
ऐ खुशी राह मेरे घर का भी क्या भूल गयी
तेरे दीदार को बीते है जमाने कितने
जाने कितने तो जख्म खाए है जिस्म ने मेरे
इनपे मरहम लगे है बीते जमाने कितने
भीड़ सी एक मेरे साथ मे भी चलती थी
आज समझा वो सभी निकले बेगाने कितने
जिनको हर बार हमने खुश किया अपने दम पे
आज देखो बना रहे है बहाने कितने
बस एक माँ की दुआए निभा गयी है वफ़ा
असर है आज भी बीते है जमाने कितने


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jitendra mani
acp admin
pcr phq

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