माँ की दुआ
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जिन्दगी ढूढ ही लेती है बहाने कितने
बन ही जाते है जवानी मे फसाने कितने
ऐ खुशी राह मेरे घर का भी क्या भूल गयी
तेरे दीदार को बीते है जमाने कितने
जाने कितने तो जख्म खाए है जिस्म ने मेरे
इनपे मरहम लगे है बीते जमाने कितने
भीड़ सी एक मेरे साथ मे भी चलती थी
आज समझा वो सभी निकले बेगाने कितने
जिनको हर बार हमने खुश किया अपने दम पे
आज देखो बना रहे है बहाने कितने
बस एक माँ की दुआए निभा गयी है वफ़ा
असर है आज भी बीते है जमाने कितने
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jitendra mani
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