मंदिरों मस्जिदों मे
कम ही क़दम रखता हूँ
दिल तो कर ही दिया
निसार मैने उल्फत में
दोस्तों के लिए जाँ
दूँ वो जिगर रखता हूँ
मेरे तो दुश्मनों से
भी है रश्क दुनिया को
दोस्त अपने बहुत चुन
के अज़ीज़ रखता हूँ
कर सकूँ अपने
दोस्तों से दोस्ती पूरी
इतनी तो हैसियत ऐ दोस्त
मैं भी रखता हूँ
काम हर बेबसी के
मारों के मैं आ पाऊँ
खुदा इतना रसूख़ दे
ये दुआ रखता हूँ
खुश रहे सब इसी मे
खुशियां है मेरी या खुदा
सबकी हो खैर यही इल्तेज़ा
मैं रखता हूँ
मणि अलफ़ाज़ मेरा दिल
का ये मुजस्सिम है
इस भरी दुनिया मे मैं पाक़ जिगर रखता हूँ
जब से खुद मे खुदा
को देखा हो खुदी से जुदा
मस्जिदों मंदिरों मे कम ही क़दम रखता हूँ
जितेन्द्र मणि