Tuesday 21 August 2012


मित्रों ये कवि़ता  मैने सुनामी त्रासदी के दौरान अंडमान मे अपनी पदस्थापना के दौरान तबाही का मंज़र देख के लिखी थी तथा वहा हट बे द्वीप मे राहत कार्य भी किया जिस हेतु मुझे अंडमान के माननीय उप राज्यपाल द्वारा प्रशस्तिपत्र भी प्राप्त हुआ

२६ दिसम्बर २००४ सुनामी की विनाश लीला

हो रहा इस बार फिर से आगमन नव वर्ष का

पर नहीं दिखता कही मंजर मुझे तो हर्ष का

है नहीं वो गात पुलकित ,ठहाके न लग रहे

हर गली कूचा है वीरान गाँव सब सूने पड़े

जल जो जीवन है बना कातिल भी हत्यारा यहाँ

एक पला मे लुट गया कितनो का देखो आशियाँ

चंद मिनटों मे उठी लहरे बड़े उद्वेग से

गर्जना करती भयावह बढ़ रही थी वेग से

प्रथम कुछ क्षण को हुआ संकुचित सागर यहाँ

विकट तांडव था वो करने जा रहा इस दरमयान

फिर उठी विषधर तरंगे दंश देने को यहाँ

मनुज पशु पल्लव संग तरु हो गये सब बियावान

आठ मीटर की तरंगे चली फिर तो कपकपाती

पेड़,घर,पशु मनुज सबको काल के मुख मे समाती

बह रहे सब विवश को जाने कहा किस ओर को

वो विधाता भी नहीं था रोक पाया जोर को

बह गयी वो प्रगति ,था विज्ञान का ऐसा पराभव

तबाही की  धरा पर थी कर रही ये प्रकृति तांडव

कर रही है अट्टहास वो दंभ पर विज्ञान के

हँस रही विद्रूपता पे आज वो इंसान के  

थमा जब तांडव ये दिख रहे शव क्षत विक्षत से

जो बचे थे कापते थे निरंतर हिलती धरा से

लुट गया सब कुछ मगर हिम्मत नहीं वो लूट पाई

आपदा भी हिम्मते मर्दा से तो ना जीत पायी

फिर श्रृजन के भाव मन मे ले खड़ा वो हो गया  

आज हिम्मत से हिमाला से बड़ा वो हो गया

जितेन्द्र मणि   

1 comment:

  1. Apka mai drewana ho gya hun is kadi ko padh kr apko koti2 pranam

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