ईद का पैगाम
आपस के रंजो गम को सभी भूल जाए हम
सब आओ मिल के जन्नत ए जहां बसाए हम
ये पाक चाँद ईद का देता है ये पैगाम
इस बार सिर्फ हाथ नहीं दिल मिलाये हम
ये नफरतो के दौर हो हम कर दे अलविदा
फिर से कभी न लौट के आये मेरे खुदा
दंगो में जब भी जितनी भी इंसान मर गये
न ये कहो की हिंदू मुसलमाँन मर गये
बस सच यही है मान लो शैतान के हाथों
बंदा ए खुदा थे सभी इंसान मर गये
अशरफ हो काशीनाथ हो क्या फर्क है हमे
दंगो मे गर बचा सके इंसान बचाए हम
आपस की नफरतों को कहे अलविदा अभी
हिंदू या मुसलमान का भेद भूल जाये हम
इंसान नियामत है उस अल्लाह पाक की
इंसान है खुद की जरा इंसान बनाये हम
जितेन्द्र
मणि
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