Thursday, 23 August 2012


        हुनर

अरे गुलाब ये हुनर मुझे सिखायेगा

खार के बीच मे किस्त तु मुस्कुराएगा

बीच काँटों के भी हो कर के तु पैदा गुलाब

इतना नाजुक सा खड़ा कैसे खिल्खिलायेगा

कड़ी चुभन के सेज पर भी लेट कर गुलाब

फिजा मे खुशबु का झोंका ही तु फैलाएगा

लाख टुकड़े भी करे लोग तेरी टहनी के

जहाँ भी पायेगा मौका वही उग जायेगा

भूल के रंज ओ गम पंखुर नए पत्ती ले कर

नए जज्बे से कैसे फिर से पनप जाएगा

जितेन्द्र मणि        

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