Wednesday, 1 August 2012


           खुदारा खुदारा

वो निकले है घर से यूँ जुल्फों को खोले

दिखा दोपहर सांझ का फिर नज़ारा

खुदारा खुदारा, खुदारा खुदारा

समा थम गया उनका दीदार करके

मेरा दिल भी धडका उन्हे प्यार करके

वो ही जान जीने का है वो सहारा

खुदारा खुदारा, खुदारा खुदारा

जो पलकें है उठती गज़ब है वो ढाती

सभी को वो अपना दीवाना बनाती

वो जो मुस्कुराती तो गुल खिलने लगते

वो आँखें अज़ब दास्ताने सुनाती

दिखाया उन्होंने गज़ब ये नज़ारा  

खुदारा खुदारा, खुदारा खुदारा

जितेन्द्र मणि

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