मर के
ही सही हमने सब वादे निभाए है
जीने की जुस्तजू मे
जख्म इतनी खाए है
गुल की जगह पे खार ही
हिस्से मे आये है
चाहत ने तेरी इस क़दर
मुझको किया तबाह
अब तो खत्म सी हो
गयी जीने की अपनी चाह
ले कर के जान ओ दिल
भी कहते पराये है
जीने
...............................................खाए है
ये दिल ज़ख़्म का करवा
सा सा बन गया मेरा
कोशिश तमाम की, नहीं
वो हो सका मेरा
मर के ही सही हमने सब
वादे निभाए है
बस तुम समझ लो कितने
जहाँ के सताए है
जीने
........................................खाए है
जितेन्द्र
मणि
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