मेरा ज़मीर
मेरा ज़मीर है बाजार की जीनत तो नहीं
नहीं बिकेगा कभी इसकी कोई कीमत भी नहीं
कौन है जो इसे खरीद कर के दिखलाये
किसी मे ऐसा हौसला नहीं हिम्मत तो नहीं
किसी के पास भी ज़मीर खरीदने के लिए
इतना ज़ज्बा नहीं है,इतनी तो दौलत भी नहीं
जितेन्द्र
मणि
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