Thursday, 2 August 2012


श्री चंद्रप्रकाश मिश्र जो मेरे फूफा जी है इसी साल भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत् हुए है के मनोभावों को वो व्यक्त करने के प्रयास मे चंद पंक्तियां 
     

तेरी बलाएँ मैं ले लूँ और तू दुआ ले ले

खुदा करे तू जमीं से फलक को भी छू ले

नहीं भूलूँगा तेरा प्यार अब कभी भी मैं

तेरा तू जान तू चाहे तो अब मुझे भूले

कतरा कतरा भी लुटाया गुलो गुलशन के लिए

तुझे भी चाहिए तू भी मेरा लहू ले ले

मैने एक राह बनायी थी अपनी जानिब ही

मेरी बुलंदियों  को तू भी या खुदा छू ले

मुझको हासिल है सब एक तेरी चाहत से

मेरे गुलशन तू दुआ ले मेरा वजू ले ले

फ़साना बन के मैं गूंजा किया ज़माने मे

कहानी बन गया खुद कहानी सुनाने मे

जाने कब राह खत्म हो गयी मेरी या खुदा

लगा रहा मैं अपने फ़र्ज़ को निभाने मे

मेरी फितरत ही रही चरागों सी जलने की

जला एक उम्र तलक जिससे समां रोशन हो

बस यही आखरी है आरज़ू मेरे दिल की

हरा भरा सदाबहार मेरा गुलशन हो


जितेन्द्र मणि    

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