श्री चंद्रप्रकाश
मिश्र जो मेरे फूफा जी है इसी साल भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत् हुए है के
मनोभावों को वो व्यक्त करने के प्रयास मे चंद पंक्तियां
तेरी बलाएँ मैं ले लूँ
और तू दुआ ले ले
खुदा करे तू जमीं से
फलक को भी छू ले
नहीं भूलूँगा तेरा
प्यार अब कभी भी मैं
तेरा तू जान तू चाहे
तो अब मुझे भूले
कतरा कतरा भी लुटाया
गुलो गुलशन के लिए
तुझे भी चाहिए तू भी
मेरा लहू ले ले
मैने एक राह बनायी
थी अपनी जानिब ही
मेरी बुलंदियों को तू भी या खुदा छू ले
मुझको हासिल है सब
एक तेरी चाहत से
मेरे गुलशन तू दुआ
ले मेरा वजू ले ले
फ़साना बन के मैं गूंजा
किया ज़माने मे
कहानी बन गया खुद
कहानी सुनाने मे
जाने कब राह खत्म हो
गयी मेरी या खुदा
लगा रहा मैं अपने
फ़र्ज़ को निभाने मे
मेरी फितरत ही रही चरागों
सी जलने की
जला एक उम्र तलक
जिससे समां रोशन हो
बस यही आखरी है आरज़ू
मेरे दिल की
हरा भरा सदाबहार
मेरा गुलशन हो
जितेन्द्र मणि
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