खुदा ही मुहब्बत
मुहब्बत खुदा है
खड़ी दरबार मे थी वो मुहम्मद
औलिया के जब
बड़ी किस्मत थी मैं
भी दर ख्वाजा के पंहुचा तब
तभी गूँजा जहन मे अपने ख्वाजा का यही पैगाम
मुहब्बत से बड़ा कोई
नहीं ये है सबसे बड़ा इमाँन
मोहब्बत ही इबादत है
इबादत ही मुहब्बत है
तो फिर वो कौन है जो
इबादत करना भी चाहेगा
खुदा से करना मुहब्बत यही हर शख्स मांगेगा
खुदा तू माफ करना
हमने बस ये तय किया है अब
इबादत की जगह कर ले
न क्यों उससे मुहब्बत अब
जितेन्द्र मणि
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