Wednesday, 1 August 2012


खुदा ही मुहब्बत मुहब्बत खुदा है

खड़ी दरबार मे थी वो मुहम्मद औलिया के जब

बड़ी किस्मत थी मैं भी दर ख्वाजा के पंहुचा तब

तभी गूँजा  जहन मे अपने ख्वाजा का यही पैगाम

मुहब्बत से बड़ा कोई नहीं ये है सबसे बड़ा इमाँन

मोहब्बत ही इबादत है इबादत ही मुहब्बत है

तो फिर वो कौन है जो इबादत करना भी चाहेगा

खुदा से करना  मुहब्बत यही हर शख्स मांगेगा

खुदा तू माफ करना हमने बस ये तय किया है अब

इबादत की जगह कर ले न क्यों उससे मुहब्बत अब

जितेन्द्र मणि   

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