मेरे दर पे तो हर एक
पाक रूह को आना है
शरीक ए
दर्द है दोनों के दिल मगर फिर भी
जो फर्क
दोनों मे है वो तुम्हे बताना है
तु बेवफा
है तेरा दर्द भी कितना तनहा
मेरी गमी
मे है शामिल तु देख सारा जहाँ
तेरा ये
दर्द है सन्नाटे से लिपटा लेकिन
दर्द मे
मेरे देख तु गम ए जमाना है
तेरी खुशी
की चांदनी मे फक़त चंद लोग
मौका परस्त
लोग वे मौसम परस्त लोग
पैर गौर
से तु देख ले गमी को मेरी
मेरा
रुतबा तु देख देख ले जमी को मेरी
शरीक मेरी
गमी मे तो ये ज़माना है
मेरी पाकीज़गी
दौलत है उमर भर की मेरी
मुझमे आयी
नही थोड़ी भी बेवफाई तेरी
मेरे दर
पे तो हर एक पाक रूह को आना है
जितेन्द्र मणि
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