मुहब्बत
ही इबादत है जमाने को बताना है
तुम्हे चाहां तभी से
बन गया दुश्मन जमाना है
सभी के लव पे अब तो
छा गया अपना फ़साना है
हा हमने दुश्मनी कर
ली ज़माने से तेरी खातिर
जहां को अब वफ़ा अपनी
हमे भी तो दिखाना है
कभी तो वक्त मेरा भी
जहाँ मे आएगा वो
महफिलों मे सभी
गूंजे मेरा तराना है
धडकते है जो बन के
दिल ही एक दूजे के सीने मे
मुहब्बत ही इबादत है
जमाने को बताना है
जितेन्द्र
मणि
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