हुनर
बिन तेरे खुद को एक अरसा भरम मे रखा है
अब खुदा खुद को ज्यादा छला भी नहीं जाता
बड़ा लंबा सफ़र तय किया इस तन्हाई में
मणि अब और मुझसे तो चला नहीं जाता
किसी की है अमानत दिल ये मेरे पास मणि
ले के उनकी अमानत चिता मे जला नहीं जाता
दिल का ये दर्द भी अजीब मर्ज़ होता मणि
जान रहते ये दर्द छोड़ कर नहीं जाता
मैने कोशिश तमाम उम्र ही कर ली है मणि
बड़ा जिद्दी है एक बार भी नहीं आता
वैसे तो सभी ग़ज़ल और शेर लिखते है
कोई यू ही किसी की नज़म को नहीं गाता
जो मिला मुझसे वो तो हो के रह गया मेरा
मणि सभी को तो ऐसा हुनर नहीं आता
जीतेन्द्र मणि
बिन तेरे खुद को एक अरसा भरम मे रखा है
अब खुदा खुद को ज्यादा छला भी नहीं जाता
बड़ा लंबा सफ़र तय किया इस तन्हाई में
मणि अब और मुझसे तो चला नहीं जाता
किसी की है अमानत दिल ये मेरे पास मणि
ले के उनकी अमानत चिता मे जला नहीं जाता
दिल का ये दर्द भी अजीब मर्ज़ होता मणि
जान रहते ये दर्द छोड़ कर नहीं जाता
मैने कोशिश तमाम उम्र ही कर ली है मणि
बड़ा जिद्दी है एक बार भी नहीं आता
वैसे तो सभी ग़ज़ल और शेर लिखते है
कोई यू ही किसी की नज़म को नहीं गाता
जो मिला मुझसे वो तो हो के रह गया मेरा
मणि सभी को तो ऐसा हुनर नहीं आता
जीतेन्द्र मणि
No comments:
Post a Comment