अपने दर पे मुझे भी
ले मेरे गरीब नवाज
या मेरे
मौला या मेरे गरीब नवाज़
उठा के
हाथ मैं भी मांगता हूँ तुझसे आज
मुझे न
चाहिए इस दो जहाँ की दौलत भी
न मुझको
चाहिए ओहदा ना ही तख़्त ओ ताज
अगर करम
ही तु है चाहता करना मुझ पे
छेड दे
मुझमे भी तु अपनी बंदगी का साज
मुझसे कर
दूर खुदी इतना रहम हो जाए
अपने दर
पे मुझे भी ले मेरे गरीब नवाज
जितेन्द्र मणि
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