अब किसी और लौ से
शमा लौ लगाएंगे हम
ऐ शमा इस
क़दर तूने है जलाया है हमको
मेरी
दीवानगी का इम्तेहान लेती हो
प्यार की
इक हँसी निगाह डालने के लिए
मेरा वजूद
ही हस हस के जला देती हो
प्यार की
रीत है खुद को मिटा देना हँस के
मगर तुम
ताप से कितनो को जला देती हो
हम तो
पाकीज़गी से प्यार निभाते अपना
तुम अकेले
कितने परवानों को जला देती तो
ये जलन
किस क़दर होती है हम परवानों को
इसकी थोड़ा
मजा अब तुझको भी चखाएंगे हम
अरे शमा अब तो तुझको थोड़ा जलाएंगे हम
जितेन्द्र मणि
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