हादसा
जिसके मैं पास गया
खा के ज़माने के सितम
समझा जिसको खुदा वो
ही था संग ए दिल सनम
लोग जो थे मेरी इस
नन्ही जान के पीछे
मैं जिसके पास गया
आँख को अपनी भींचे
उसने भेजा था मेरे
वास्ते ये मौत और हम
चाहते जान ओ दिल से
इसको था ये कैसा भरम
अब नहीं जीने की
चाहत उठा ले मुझको खुदा
मरके शायद उनके
अरमान कर दे पूरे हम
मेरे मैयत से खत्म
होगा कही उनका वहम
नहीं किसी के ,हमेशा
से हम तो उनके सनम
जितेन्द्र मणि
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