Friday, 17 August 2012


     ईद मुबारक



आपस के भेदभाव सभी भूल जाय हम



फूलों की तरह फिजा मे खुशबू फैलाये हम



अल्लाह ने सब कुछ दिया हमको बहुत मगर



दिल मे भरा हामी ने तो वो मजहबी ज़हर



मुल्को को सरहदों को दिलों को भी लिया बाँट



हम बंट गये घर बंट गये बंट ही गये जज्बात



छोड़ो पुराना राग नया गीत सुनाओ



अब हाथ के संग ही में अपना दिल भी मिलाओ

  
ये पाक चाँद ईद का है दे रहा पैगाम



इस ईद पे गले भी मिलो दिल भी मिलाओ


 रुक जायेंगी बस आप ही नफरत की आंधियाँ



हर दिल मे तुम शमा ए मुहब्बत तो जलाओ



अब खुद को मिटा के ही बस मिटेगा अँधेरा



खुद के लहू से शामाँ ए अमन तो जलाओ



जितेन्द्र मणि


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