ईद मुबारक
आपस के भेदभाव सभी भूल जाय हम
फूलों की तरह फिजा मे खुशबू फैलाये हम
अल्लाह ने सब कुछ दिया हमको बहुत मगर
दिल मे भरा हामी ने तो वो मजहबी ज़हर
मुल्को को सरहदों को दिलों को भी लिया बाँट
हम बंट गये घर बंट गये बंट ही गये जज्बात
छोड़ो पुराना राग नया गीत सुनाओ
अब हाथ के संग ही में अपना दिल भी मिलाओ
ये पाक चाँद ईद का है दे रहा पैगाम
इस ईद पे गले भी मिलो दिल भी मिलाओ
रुक जायेंगी बस आप ही नफरत की आंधियाँ
हर दिल मे तुम शमा ए मुहब्बत तो जलाओ
अब खुद को मिटा के ही बस मिटेगा अँधेरा
खुद के लहू से शामाँ ए अमन तो जलाओ
जितेन्द्र मणि
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