हो दिन या रात अगर
तेरी दीद हो जाय
हो दिन या रात अगर
तेरी दीद हो जाय
खुदा कसम या खुदा
मेरी ईद हो जाए
जो तुम गिरा दो पलक
शाम रेशमी होती
पलक उठाओ तो मेरा
सवेरा हो जाए
जो रूठ जाओ तो ऐसा
नज़ारा होता है
जैसे इस दोपहर मेरा
अँधेरा हूँ जाये
तेरी जुल्फे ही छाँव
है मेरी हर पल के लिए
अब तो उनके तले मेरा
बसेरा हो जाए
तुम जो लग जाओ गले
ईद ओ होली मानती है
जो मुस्कुरो तो हज़ार
गज़ल बनती है
मेरी आखो मे अब तो
खाब तेरा हो जाए
जितेन्द्र मणि
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