Tuesday, 7 August 2012


हो दिन या रात अगर तेरी दीद हो जाय

हो दिन या रात अगर तेरी दीद हो जाय

खुदा कसम या खुदा मेरी ईद हो जाए

जो तुम गिरा दो पलक शाम रेशमी होती

पलक उठाओ तो मेरा सवेरा हो जाए

जो रूठ जाओ तो ऐसा नज़ारा होता है

जैसे इस दोपहर मेरा अँधेरा हूँ जाये

तेरी जुल्फे ही छाँव है मेरी हर पल के लिए

अब तो उनके तले मेरा बसेरा हो जाए

तुम जो लग जाओ गले ईद ओ होली मानती है

जो मुस्कुरो तो हज़ार गज़ल बनती है

मेरी आखो मे अब तो खाब तेरा हो जाए

जितेन्द्र मणि

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