Friday 3 August 2012


          हमसाया

जिसने ताउम्र था रहने का साथ वादा किया

जिसने हमसाया बनके साथ का वचन दिया

समझ सका न ये फरेब तब तलक जब तक

रोशनी और नूर साथ मे रही जब तक

जो रोशनी की जद तलक बना रहा साया

अंधेरे आते ही कही नज़र नहीं आया

मेरे साये की तरह वो भी फरेबी निकला

मेरा हमसाया भी साया की तरह ही निकला

जितेन्द्र मणि      

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