Tuesday, 14 August 2012


मिट गयी मेरी खुदी अब तो खुदा ही रह गया

रब दा बंदा हूँ मैं रब दी बनायी चीज हूँ

इसलिए तो खास हूँ वरना तो मैं नाचीज हूँ

सब उसी रब की मेहर मेरा नहीं कुछ भी हुनर

मेरी जान पे या वजूद पे है उसी का तो असर

रब का हिसा हूँ तभी तो रब के भी मैं करीब हूँ  

जो हूँ जब हूँ तब था अब हूँ महर ए रब हूँ

रब ही सब है जहा जब है वरना मैं तो गरीब हूँ

मिट गयी मेरी खुदी अब तो खुदा ही रह गया

मेरा जो मुझमे था थोड़ा आंसुओं संग बह गया

खुद मे अब देखा खुदा इतना मैं उसका अजीज हूँ

जितेन्द्र मणि         


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