मिट गयी मेरी खुदी
अब तो खुदा ही रह गया
रब दा बंदा
हूँ मैं रब दी बनायी चीज हूँ
इसलिए तो
खास हूँ वरना तो मैं नाचीज हूँ
सब उसी रब
की मेहर मेरा नहीं कुछ भी हुनर
मेरी जान
पे या वजूद पे है उसी का तो असर
रब का
हिसा हूँ तभी तो रब के भी मैं करीब हूँ
जो हूँ जब
हूँ तब था अब हूँ महर ए रब हूँ
रब ही सब
है जहा जब है वरना मैं तो गरीब हूँ
मिट गयी
मेरी खुदी अब तो खुदा ही रह गया
मेरा जो
मुझमे था थोड़ा आंसुओं संग बह गया
खुद मे अब
देखा खुदा इतना मैं उसका अजीज हूँ
जितेन्द्र मणि
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