मेरे
दर्द मे रोये दीवारों दर ये रात भर
कल रात दर्द मुझको बहुत
सताने लगा
इस दर्द मे ही आधी
रात तलक मैं जगा
वो स्याह रात को लगा
बनाने और स्याह
इस से न बचने की नज़र
आती थी कोई राह
फिर दर्द की पूरी
सियाही ही उड़ेल दी
इन खिड़कियों दीवार ओ
दर पे भी उड़ेल दी
फिर चैन से मैं सो
सका था रात मे मगर
मेरे दर्द मे रोये
दीवारों दर ये रात भर
जितेन्द्र
मणि
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