Monday, 27 August 2012


मेरे दर्द मे रोये दीवारों दर ये रात भर

 

कल रात दर्द मुझको बहुत सताने लगा

इस दर्द मे ही आधी रात तलक मैं जगा

वो स्याह रात को लगा बनाने और स्याह

इस से न बचने की नज़र आती थी कोई राह

फिर दर्द की पूरी सियाही ही उड़ेल दी

इन खिड़कियों दीवार ओ दर पे भी उड़ेल दी

फिर चैन से मैं सो सका था रात मे मगर

मेरे दर्द मे रोये दीवारों दर ये रात भर

जितेन्द्र मणि   

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