Thursday, 27 September 2012


कुछ इसे गुदगुदा गया है कोई

खुशी से यूँ रुला गया है कोई

अब नहीं कुछ सुनाई पड़ता है

प्यार से यूँ बुला गया है कोई

  जितेन्द्र मणि   

 

1 comment:

  1. प्यार की जुबां कहाँ होती है,
    भावो मे ही उडाने मिल जाती है।

    रचना:
    प्रतीक संचेती

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