खुद को
खोने का
भी मलाल
नहीं
जहां का खुद
का
भी ख्याल
नहीं
अभी तलक
तो खुद को
खोजता मैं
दर बदर था
गली कूचा
सभी राहों में
मैं शाम ओ
शहर था
खुदी को
खो के ही मैने
तो तुमको पाया था
खुदा ने
खुद ही मुझे
आपसे
मिलाया है
जितेन्द्र
मणि
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