चंदा तेरा दीदार अब
तो हम ना करेंगे
चेहरे पे लिए दाग चंदा तुझे क्यों गुरूर
तुझपे अदाओं का है छाया कैसा ये सुरूर
लेकर पराया नूर चंदा किस भरम मे है
तुझमे भी है क्या शर्मोहया जो सनम मे है
जो खुद के नूर से सुकून देती है मुझको
नज़रों के इशारे से चुरा लेती है दिल को
मुझको नहीं तेरी ज़रूरत सुन ले ओ चंदा
अब ईद को कहेंगे सनम आज छत पे आ
हम उसको देख कर के अपनी ईद करेंगे
चंदा तेरा दीदार अब तो हम ना करेंगे
जितेन्द्र मणि
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