Tuesday, 11 September 2012


     बन जा इंसान

वो जो दहशत के सहारे अमन की चाह मे है

वो है काफ़िर वो सभी दोज़खी की राह मे है

कोई राम ओ खुदा नहीं कहता कभी हमसे

करो हलाक यू मासूम को बोलो कसम से

बिला वज़ह ना बना बंदे जहन्नुम ये जहाँ

जन्नते चाह मे तु कर ना इन्हे यू कुर्बान

अरे समझ ले सबसे बड़ी तहजीब है ये

अगर जो हो सके तू भी तो बन जा इंसान

जितेन्द्र मणि

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