बन जा इंसान
वो जो दहशत के सहारे
अमन की चाह मे है
वो है काफ़िर वो सभी
दोज़खी की राह मे है
कोई राम ओ खुदा नहीं
कहता कभी हमसे
करो हलाक यू मासूम
को बोलो कसम से
बिला वज़ह ना बना
बंदे जहन्नुम ये जहाँ
जन्नते चाह मे तु कर
ना इन्हे यू कुर्बान
अरे समझ ले सबसे बड़ी
तहजीब है ये
अगर जो हो सके तू भी
तो बन जा इंसान
जितेन्द्र
मणि
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