नकाब
तेरे नकाब का चर्चा शहर मे जोर पे है
रुख जो हो बेनकाब ,खुदा जाने क्या हो
इन नश्तर-ए-नैनों से क़त्ल कितने ही हुए
आँखों से जो पिए ,तो खुदा जाने क्या हो
जो हुस्न चाँद सा जुल्फों से छिपा रखा है
जो जुल्फ खोल दे खुदा जाने क्या हो
नजाने कितने राज दफ़न है तेरे दिल मे
जो गिरह खोल दे दिल की ,जाने क्या हो
जितेन्द्र मणि
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