Wednesday 17 April 2013


ऐसा रौशन सा आफताब भी बनता ये मणि

 

ये दिल का रिश्ता है ना दाम लगाओ इसका

किसी भी नूर से है कीमती रिश्ता ये मणि

हो मुझको गम भला क्यों दूरियों का ओ हमदम

जो मेरे दिल बसी रहती है हरदम ये मणि   

अरे क्या कोहकाफ़ वालों, को भी है नसीब

जो पाक ओ साफ़ सा दामन मेरा अपना ये मणि

जहाँ हो बंदिशे मजबूरियां वो  इश्क नहीं

हर एक सेहरा समंदर को लांघता ये मणि  

जमाल ए इश्क हो कमाल बाबुलंद इतना

जमी पे पाँव रख,सर से फलक छूता ये मणि  

रौनक ए इश्क कर दे सितारों को फीकी

ऐसा रौशन सा आफताब भी बनता ये मणि

 

जितेन्द्र मणि   

     

No comments:

Post a Comment