ऐसा रौशन सा आफताब भी
बनता ये मणि
ये दिल का रिश्ता है ना दाम लगाओ इसका
किसी भी नूर से है कीमती रिश्ता ये मणि
हो मुझको गम भला क्यों दूरियों का ओ हमदम
जो मेरे दिल बसी रहती है हरदम ये मणि
अरे क्या कोहकाफ़ वालों, को भी है नसीब
जो पाक ओ साफ़ सा दामन मेरा अपना ये मणि
जहाँ हो बंदिशे मजबूरियां वो इश्क नहीं
हर एक सेहरा समंदर को लांघता ये मणि
जमाल ए इश्क हो कमाल बाबुलंद इतना
जमी पे पाँव रख,सर से फलक छूता ये मणि
रौनक ए इश्क कर दे सितारों को फीकी
ऐसा रौशन सा आफताब भी बनता ये मणि
जितेन्द्र मणि
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