आइना
जब तलक थे हम जवान
सचाई दिखलाता था ये
उम्र क्या गुजरी हुआ
कितना ये झूठा आइना
आइना को साफ़ कर खुद
को जवां दिखलाऊँ मैं
जुस्तजू मे कर रहा
था साफ़ टूटा आइना
वक्त जब दीदार का
आया ये रूठा मुझसे क्यों
पहले थे रूठे हमीं
अब हम से रूठा आइना
एक भरम के आसरे थी
कट रही ये जिन्दगी
हम जवाँ सफ्फाक़ है ,गन्दा
है फूटा आइना
सच के आगे झूठ तो
मेरा ये बेपर्दा हुआ
टूटा अब मेरा गुरूर ,
जो आज छूटा आइना
जितेन्द्र मणि
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