Wednesday, 17 April 2013


            आइना

जब तलक थे हम जवान सचाई दिखलाता था ये

उम्र क्या गुजरी हुआ कितना ये झूठा आइना

 

आइना को साफ़ कर खुद को जवां दिखलाऊँ मैं  

जुस्तजू मे कर रहा था साफ़ टूटा आइना

 

वक्त जब दीदार का आया ये रूठा मुझसे क्यों

पहले थे रूठे हमीं अब हम से रूठा आइना

 

एक भरम के आसरे थी कट रही ये जिन्दगी

हम जवाँ सफ्फाक़ है ,गन्दा है फूटा आइना  

 

सच के आगे झूठ तो मेरा ये बेपर्दा हुआ

टूटा अब मेरा गुरूर , जो आज छूटा आइना

 

जितेन्द्र मणि  

     

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