Wednesday, 3 April 2013


             समर्पण

जितना भी जीवन का क्षण है

तुम्हे बस तुम्हे समर्पण है

मेरा जीवन अब तेरा है

तेरा बस तेरा दर्पण है

इस डाली के फल फूल सभी

तुझको बस तुझको अर्पण है

संग तेरे ही बस लग पाया

जीवन कितना आकर्षण है  
जितेन्द्र मणि

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