Thursday 16 August 2012


यही बदनामिया अब बन गयी शोहरत है मेरी

गज़ल इसे नहीं कहना ये इबादत है मेरी

अपने दिल के सुरों सो ढाल कर के लफ्जो मे

अक्स कागज़ के उतारूँ यही आदत है मेरी

हँसते हँसते यूँ ही लुट जाना आह भरे बिना

खुद को मिटाना प्यार मे ही तो मुहब्बत है मेरी

अपने अलफ़ाज़ से सहलाता सब के जख्मों को

बड़ी शिद्दत से जो भी ढूंढते है अपनों को

उनको देना सुकून बन गयी फितरत है मेरी

प्यार मे हो गये बदनाम अपने मंजिल के

लुट गये हम तो पास आ के अपने साहिल के

यही बदनामिया अब बन गयी शोहरत है मेरी

जितेन्द्र मणि  

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