Thursday 16 August 2012


मर के ही सही हमने सब वादे निभाए है
जीने की जुस्तजू मे जख्म इतनी खाए है
गुल की जगह पे खार ही हिस्से मे आये है  
चाहत ने तेरी इस क़दर मुझको किया तबाह
अब तो खत्म सी हो गयी जीने की अपनी चाह
ले कर के जान ओ दिल भी कहते पराये है
जीने ...............................................खाए है
ये दिल ज़ख़्म का करवा सा सा बन गया मेरा
कोशिश तमाम की, नहीं वो हो सका मेरा
मर के ही सही हमने सब वादे निभाए है
बस तुम समझ लो कितने जहाँ के सताए है
जीने ........................................खाए है
जितेन्द्र मणि   

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