Tuesday 21 August 2012


        जिंदगी

जिंदगी से भाग मत वरना

बहुत ये भगायेगी

जिंदगी को भींच के रख

अपनी बाहों मे सम्हाल

वरना ये तो रेत की

माफिक फिसलती जायेगी

धुप भी है छाँव है ,गम

औ खुशी की नाव है

एक सिल्ली बर्फ की है

दर्द है अहसास है

कभी लगती दूर तो

लगती कभी ये पास  है

एक दरिया है जो बहता

सूखता जो जा रहा

पी ले तू जी भर इसे

ये सूख एक दिन जायेगी

जिंदगी से भाग मत वरना

बहुत ये भगायेगी

जितेन्द्र मणि




No comments:

Post a Comment